रविवार, 12 दिसंबर 2010

चाहे कितने दूर रहेँ हम . . .

चाहे हमसे दुनियाँ रूठे,
चाहे वादे हों सब झूठे,
हम सदा करीब रहेंगे।
कंटकों भरी राह हो चाहे,
उसका प्रेम अथाह हो चाहे,
मगर मिला साथ तुम्हारा हमें, तो,
हम अपना नसीब कहेंगे।

प्यार है बन्धन अपनों का, फुलवारी प्यार की हर पल सजाना।
चाहे कितने दूर रहेँ हम, बाँधकर बन्धन में हमें पास लाना॥

हम चाहते हैँ साथ अपनों का,
हाथ में हो हाथ अपनों का,
चाहै जो रीति हो, अपना लेँगे।
पूरी करनी हो यदि शर्त कोई,
लेना पङे जीवन व्रत कोई,
रूठ जायें अगर आप कभी तो,
हो विनम्र हम मना लेँगे।

हम सदा साथ रहेंगे- राहोँ में आये कभी संकट तो यही दोहराना।
चाहे कितने दूर रहेँ हम, बाँधकर बन्धन में हमें पास लाना॥

तुमसे प्रीत जो लगाई तो,
प्यार की ज्योत जलाई तो,
तुम भी चिराग जला देना।
हमने जो पैगाम दिये थे,
वो लम्हे अपने नाम किये थे.
सजाना हो महफिल कभी तो,
रंग जमाने को हमें भी बुला लेना।

अब तन्हाइयों में अच्छा नहीं लगता हमें, अकेले बैठ कर रोना।
चाहे कितने दूर रहें हम, बाँध कर बन्धन में हमें पास लाना॥

~ सुखदेव 'करुण'

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी कविता है हमारी और ब्लॉग जगत में आपका बहुत बहुत स्वागत और अपनी कविताओं से ऐसे ही सरबोर करते रहने कि शुभमनाएं के साथ..

    जवाब देंहटाएं
  2. very good poem sir....
    pdte pdte aanko mai arsu aa gye ..
    aapne to sare dosto ki yad diya di...
    बहुत ही अच्छी कविता .
    अपनी कविताओं से ऐसे ही सरबोर करते रहने कि शुभमनाएं है

    जवाब देंहटाएं