सोमवार, 27 जनवरी 2014

कुछ आप बीती . . .

    व्यक्ति के पास जब खाली समय होता है तो उसके मस्तिष्क में तरह-तरह के विचारों का प्रवाह चलता रहता है। शांत मौसम में एकान्त में रहकर ऐसे ही लोगों का बौद्धिक सृजन इस वैचारिक मंथन के फलस्वरूप – एक कवि, चित्रकार अथवा महान आविष्कारक के रूप में होता है। बहुत से लेखक और आविष्कारकों की जीवनीयों में लिखा है कि वे एकान्त प्रिय थे। भारत के महान वैज्ञानिक, मिशाइल मेन – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने स्वयं अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्हें एकान्त पसन्द था।

सुखदेव 'करुण'

16 वर्ष की अल्पायु से ही घर से दूर अकेले रहकर इस भाव-प्रवाह में कुछ पल व्यतीत करने के अवसर लगातार मिलते रहे। परिवार के सभी सदस्यों से विशेषकर पूजनीया माता जी से दूर रहकर तन्हाई में गुमसुम यादों और ख्वाबों में इस प्रकार डूब जाता कि कभी-कभार तो घण्टों बाद भी उठने को जी नहीं करता। रात्रि को बिस्तर में लेटे हुए सूने आसमां को देखता रहता और दिल न जाने किन ख्यालों में डूब जाता। यद्यपि – मातृ-वत्सल, पितृ-स्नेह, गुरुजनों के आशीर्वाद और साथियों के प्यार ने मेरी युवावस्था को तन्हा नहीं बीतने दिया तथापि गुमसुम बैठकर चिन्तन-मनन करना मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था।

सन् 2007 में राजकीय बाँगङ महाविद्यालय डीडवाना में आयोजित ‘भव्य कवि सम्मेलन’ में पधारे अतिथि कवियों की सेवा- सत्कार का एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप मेँ जो अवसर मिला, आयोजन के कर्णधार – डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ (व्याख्याता – स्थानीय महाविद्यालय) के मार्गदर्शन में जो अनुभव प्राप्त हुआ और अतिथि कवियों का जो सान्निध्य मिला विशेषकर चित्तौङ से पधारे हुए कवि ‘सिद्धार्थ देवल’ से उनके आवास में जो बातचीत की, उसी दिन से ‘सुखा राम’ के अन्तर्मन से भी कविता का बीज अंकुरित होने लगा और तभी से वर्तमान जीवन की करुण वेदना को – सुखदेव ‘करुण’ की कलम ने उद्धृत करना आरम्भ कर दिया। यह मेरे लिये एक सुनहरा पल था जहाँ से लगातार टूटी-फूटी ‘पंक्तियों’ का सृजन होता आ रहा है। कभी युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करते शहीद हुए सैनिक की गाथा अथवा जेठ की दुपहरी में नंगे पाँव हल चलाते हलधर और दूध से सफेद (पवित्र) बैलों की जोङी की कथा सुनकर मन में जो करुणा जागृत होती, उसे कलम कागज पर उकेर देती। यद्यपि इन पंक्तियों को किसी पत्र-पत्रिका मेँ छपकर जन-सामान्य तक पहुँचने का अवसर कम ही मिले हैं तथापि आधुनिक सूचना तकनिकी के युग मेँ इन्टरनेट ( ब्लॉग्स की दुनीया ) ने काफी लोगों तक इन्हें पहुँचाया है जो खुशी की बात है। एक बार 37 हस्तलिखित कविताओं की डायरी खो जाने से काफी दु:ख हुआ। जिनमें से कुछ कविताएँ ब्लॉग्स तथा अन्य संग्रहों में पुन: मिल गई।
वर्त्तमान में कंप्यूटर शिक्षा ग्रहण करने के बाद चिकित्सा एवं स्वास्थय विभाग में " इन्फोर्मशन  असिस्टेंट" पद पर 30 सितम्बर 2013 को राजकीय सेवा में नियुक्ति मिली है जिसके सहारे परिवार के भरण पोषण के साथ साथ अपने जीवन में आगे बढ़ने का नया स्टेप मिल गया. आगे शिक्षा के क्षेत्र में प्रोफैशनल जॉब की खोज के साथ साथ काव्य लेखन में आगे कदम बढ़ाने के प्रयास कर रहा हूँ. आशा है प्रबुद्ध लोगों के मार्गदर्शन और आशीर्वाद तथा मित्रों के सहयोग से मुझे और सम्बल मिलेगा और चिकित्सालय में रहकर जनसामान्य की सेवा करते हुए जनमानस की मनोगत भावनाओं को उजागर करते रहने से मेरी कविता का सामर्थ्य और बढ़ेगा। अब मैं भोग-विलास में सोयी कविता ( काव्य लेखन ) को पुन: जागृत करने में  पुरजोर ताकत लगा दूंगा। -
आपका अपना
- सुखदेव ‘करुण’ - ' इन्फोर्मेशन असिस्टेंट'

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