गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

दीपोत्सव ...

कार्तिक अमावश्या (दीपावली) की शाम आठ बज चुके हैं | मनु अपने कमरे में बैठा कुछ पढ़ रहा है, पिता अभी फ़ोन पर बात कर रहे हैं | लक्ष्मी पूजन हो गया था, गली में खूब पटाखे व फुलझड़ियाँ जलाये जा रहे हैं, मनु की माता जी खाना परोस रही है, परन्तु मनु अब भी किताब में एक टक नजर टिकाये बैठा है |

माता जी - सुनते हो जी ! खाना तैयार है .......(रुक कर ) मनु बेटे आ जाओ खाना खा लो ! तैयार है | (मनु अपने पलंग पर आधा लेटा हुआ किताब पढ़ रहा है, तिरछी नजर से माता जी की ओर देखता है ओर फिर वहीं सामने दीवार पर नजर टिका कर बैठ जाता है | )
(माता जी फिर से आवाज लगाती है) बेटे खाना ठंडा हो रहा है..... खा लो न........

(मनु अभी बच्चा  है  करीब तेरह साल का | मनु के पिता जी पोस्ट मास्टर हैं, मनु के घर की बगल में एक घास - फूस की झोंपड़ियों का बना हुआ एक घर है जिसमे एक विधवा औरत ओर उसके दो बच्चे रहते है मोहल्ले में उस छप्पर छाजन को छोड़ कर चारों ओर अच्छे पक्के मकान है यह टूटा फुट मकान मनु के पापा जी ओर अन्य मोहल्ले के लोगो की आँखों में खटकता है | वो हर हाल में इस टापरे को उजाड़ना चहेते हैं | एक बार मनु ने मोहल्ले के कुछ लोगों से सुना भी था - "ये साला कंजर परिवार कहाँ आकर बस गया, इसने सारी कालोनी का standard ख़राब कर रखा है | हमें इसे जैसे - तैसे करके निकाल कर भगा देना चाहिए | मनु इस बात को लेकर आज माता जी से भी बहस कर चूका था | वह किसी भी स्थति में इस परिवार पर अत्याचार सहन करने को तैयार नहीं था | इसी लिए आज वह गुस्सित था |
(मनु के पिता जी अन्दर आते है और बोलते है ...)
पिताजी -  क्यों बे ... बहुत हुआ मोहल्ले वालों का शुभ - चिन्तक ........ क्यों मुंह फुलाए बैठा है ........ त्यौहार के दिन हट नहीं करते .......... चल उठ खाना खाए लेते हैं |
(मनु धीरे से बोलता है) - मुझे भूख नहीं है ...
पिता जी (गुस्से में) - उठता भी है की अभी चांटा लगाऊं ........
मनु - आभी मेरी इच्छा नहीं है ...(तभी माता जी आ जाते है)
माता जी - (मनु को सहलाती हुई) उठ बेटे khan खा लेते हैं .....
(मनु फिर भी नहीं उठता है)
माता जी - चलो जी आप तो खा लो में इसे यहीं खिला देती हूँ |
(माताजी खाना अन्दर लेकर आती है | मनु दिवार का सहारा लिए पलंग पर बैठा है)
माताजी - ले बेटा खाना खा ले, ठंडा हो रहा है ........ त्यौहार के दिन हट नहीं करते ...


मनु (करुण स्वर में) - आपके पडोसी के घर में आज चूल्हा भी नहीं जला आप त्यौहार मना रहे हैं|
धिक्कार है माताजी ......... जब तक ये मिठाइयाँ रजत के घर नहीं पहुंचा आता तब तक में खाना नहीं खाऊंगा |
(मनु के पड़ोस में जो टूटा सा कच्चा मकान है, जिसमें एक विधवा औरत तथा उसका बेटा रजत जो मनु का सहपाठी हैं, व उसकी छोटी बहिन पूजा रहते  हैं, अत्यधिक गरीब परिवार,  औरएक औरत कैसे तीन लोगों का खाना खर्चा और पढाई  वहन कर पाती है, मनु के दादाजी जब जीवित थे, तो उन्हें दो रोटी और दाल हर शाम पहुंचा देते , रजत मनु की क्लास का सर्व- श्रेष्ट छात्र है और गहन  मित्र भी है ..... उसको स्मरण कर मनु की आँखों में आँसू आ जाते हैं ...... वह रोते हुए पुनः बोलता है )
मनु - माता जी जिस रात को दादाजी मरे थे, उस रात उनकी आंखे भी गीली थी, उन्होंने मुझे और रजत को एक कहानी सुनाई थी और मुझे बोला था - "बेटा गरीब लोगों की हमेशा सेवा करनी चाहिए | यह जो गरीब परिवार हमारे बीच बसा हुआ है इसको दाना पानी यहीं के दो दे रहें हैं | तभी से ये गरीब बचे पढने को भी जाने लग गए हैं और होशियार भी हैं " दादाजी ने यह भी कहा था बेटा तुम दोनों सदा साथ रहना  तथा चंपा को कभी भी कपडे और आनाज की जरुरत पड़े तो दे देना "
माताजी (बात काटते हुए) - बेटा वो तो ठीक है लेकिन जब हम लोग इन्हें कुछ खिला - पिलाते हैं, तो ये मोहल्ले वाले हम पर जलते हैं | ये तो इन्हें यहाँ से निकालने  पर उतरे हैं |
मनु (चिल्लाते हुए) - कौन है इस पतिवर को यहाँ से निकालने वाला ......... मेरे सामने आये ......... किसी के बाप की नहीं है यह जमीन ............
(अपने पिता से) पिताजी कुब तक चुप रहोगे ? आपके बॉस इसे निकलना चाहते है, और आप भी इसी साजिस में हैं | (रूककर) आप बोलोगे तो वो आपका स्थानान्तरण करवा देंगे , समय से पहले ऑफिस से नहीं आने देंगे, नहीं इतने से स्वार्थ की खातिर आपको चुप नहीं रहना होगा |
मनु (घर के दरवाजे पर आकर रजत के घर की तरफ देखते हुए बोलता है ) - बहार निकालिए....... देखिये! उस घर में आज दीपावली के दिन भी दीपकों की कतार तो क्या चूल्हा तक भी नहीं जला |
      (माताजी और पिताजी उसे चुप रहने को बोलते हैं लेकिन वह दरवाजे पर खड़े होकर बोलता है ) - हाँ पिताजी हमें सब मालूम है, आपके बॉस बेशर्म हैं, हरामी हैं, मैं तो कहता हूँ कल जब एक्सिडेंट हुआ तुब मर क्यों नहीं गये......... इन्होंने सेठजी को इन लोगों को सामान देने को मना कर दिया |   आज से तीन दिन पहले जो इनके घर के सामने रोड़ - लाईट थी, वह उतरवा दी गई | पानी का नल रोक दिया गया | हाय! इतना अत्याचार ............ इतनी बेबसी से मारे जा रहे हैं ...... अरे मानव हो तुम मानव !
(मनु चिल्लाता हुआ घर से बाहर निकल जाता है, माताजी उसे घसीटते हुए अन्दर लाती है | मनु बहार चला जा हिया और आगे बोलता रहता है ...... मनु की आवाज सुनकर मोहल्ले के कुछ लोग इकट्ठे हो जाते हैं )

                          पर्दा गिरता है----------
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                        पर्दा उठता है

(मनु के पड़ोस का पुराना झुग्गी झोंपड़ियों के  मकान की बहार की चोक में रजत, उसकी माँ और छोटी बहिन एक चिमनी जलाये गुमसुम बैठे हैं, घर के द्वार पर मोहल्ले के कुछ लड़के व एक - आध बड़े लोग वहां झुण्ड में खड़े हैं | मनु के हाथों में एक बर्तन में कुछ मिठाइयाँ है | )
मनु - (चम्पा को वह बर्तन देते हुए) लीजिये आंटी जी आपके द्वार पर भी त्यौहार मानना है | हम अकेले त्यौहार कैसे मना सकते ..........(मनु द्वार की और बढ़ते हुए सब लोगों को बोलता है) - आप सब लोगों को मेरा हाथ जोड़ निवेदन है कि इस गरीब परिवार को में जन्म से ही यहाँ देख रहा हूँ मेरे दादाजी और कुछ बुजुर्ग लोगों ने सदा से इसे पाला - पोसा है | बिचारे असहाय और कहीं जाकर कहाँ बस पाएंगे | मोहल्ले के कुछ लोग स्वार्थी लोग इस टूटे मकान को कालोनी कि छवि के लिए लड़ा के लिए नष्ट कर देना चाहते हैं, इन्हें खूब यातनाएं दी जा रही है, यह जमीन हड़पने कि साजिस भी रची जा रही है | मेरे देखते - देखते पिछले एक सप्ताह में इस घर के सामने कि रोड -  लाइट उतरवा दी गई, बगल में लगे नल को रुकवा दिया गया और आज रसन कि दुकान से सामान देने से भी मना करवा दिया गया | मैं पूछना चाहता हूँ उन लोगों से कि क्या कसूर है इनका ....... जो कि इन्हें इतनी यातनाएं दी जा रही है | आप लोगों ने सोचा कभी कि इस जगह आप होते तो कहाँ तक सहन कर पते ये सब .......
(मनु करुण स्वर में बोलता है ) - आज त्यौहार का दिन है सभी खूब पटाखे जला रहे हैं, फुलझड़ियाँ जलाई जा रही है, हर घर में भांति - भांति के पकवान बनाये गए हैं, मगर इस बेचारे परिवार में चूल्हा भी नहीं जला .......... क्या हमारा फर्ज नहीं बनता ........... मेरे दादाजी को स्मरण करता हूँ, जिन्होंने इस परिवार का पूरा ख्याल रखा, वरना ये यहाँ से कभी के निकल दिए जाते | जब से वो इस दुनिया से चल बसे तभी से इस परिवार रूपी पेड़ के पते पीले पड़ने लग गए और आज स्थति आपके सामने है, मैं सब को आह्वान करता हूँ कि हम सब इस परिवार का ख्याल रखेंगे | आपनी खुशियाँ देंगे और इनके गम को बाँटेंगे |
(सभी बच्चे अपने खूब सारे  पटाखे और फुल-झड़ियाँ  रजत को देते हैं मनु रजत को गले लगता है. और आपने साथ खाना खिलाता है और सभी मिलकर खूब पटाखे जलाते हैं | साथ ही दीपकों की लम्बी क़तर चंपा आंटी के पुराने घर को अब मनमोहक बना देती है | अब चंपा आंटी के घर भी दीपावली का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है |
         एक छोटे से बालक के विद्रोह से एक महँ विध्वंश रुक गया और असहाय परिवार पर मंडरा रहे संकट के बदल ताल गए | चंपा आंटी अब सपरिवार  खुश है |


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