शनिवार, 4 अप्रैल 2015

नारी . . .

नारी नर की जननी है ,
इस मातृशक्ति का सम्मान करो |
अरे नारी है श्रम का पुतला,
सजा कर सिंहासन इसका आह्वान करो |

              प्रेम, करुणा और त्याग से,
              और ममत्व से क्या यह अछूती है |
               अरे यही इस ब्रह्माण्ड में,
               मानव जगत की एक अनुभूति है |
जिस कौख से जन्म लिया,
हाय! आज उसी को ठुकराते हो |
देखते हो नित नग्न अत्याचार,
स्वयं उन्हीं को अपनाते हो |

             पूछो जरा अपनी माता से जाकर,
             क्या सोचती है वो तुम्हारे प्रति हर पल |
             क्या होता है मातृ-सनेह और वत्सल,
             बता देगी वो चीर के अपना आँचल |
पूछो उस नवयोवना से जाकर,
क्यों माँ गौरी को फूल चढ़ती है |
किसके लिए मांगती है वो मन्नोतियाँ,
सर्वस्व अपना नीर सा बहती है |
            क्या हालत है आज गृहणी की,
            कितने काम वो सम्हालती है |
            पालन-पोषण तुम्हारा करके,
            बच्चों को तुम्हारे  पलती है |
कौन है जो गीले में सो जाये,
जाड़े से तुम्हे बचा करके |
है कौन जो भूखा रह जाये,
भर पेट तुम्हे खिला करके |
           बिना इसके क्या तुम यहाँ होते ?
           स्वयं इसे मत भुलाओ तुम |
           तुम्हें जन्म देकर इसने जो कर्ज किया,
           सहर्ष उसे चुकाओ तुम |
            
             - सुखदेव 'करुण'

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