रविवार, 12 दिसंबर 2010

जुदाई . . .

आखिर भुला ही दिया साथी तुमने, दूर हमसे जा करके।
छोङ के चले गये अकेले में, तुम अपना हमें बना करके।

मैंनेँ भी बिताये थे, दो पल जिन्दगी के तेरे साथ में।
शीशे की तरह तोङ कर दे दिया, तूनें यह दिल मेरे हाथ में।
जिन्दगी की इन राहों मेँ, कई मुकाम कई पैगाम होँगे।
मगर बिताये जो पल तेरे साथ में, वो आरजू तेरे ही नाम होँगे।
थकी हुई यह जुबां मेरी, गीत जुदाई के गा रही थी।
प्यार था दिल मेँ उमङ रहा, आँखें आँसू बहा रही थी।
कैसे समझाता मैं अपने दिल को, झूठे लग रहे थे वादे सारे।
टूट रहे थे स्वप्न मेरे, बदल रहे थे इरादे सारे।
उठ रहे थे बवंडर सागर मेँ, लहरें हिलोरेँ खा रही थी।
देख रहे थे वो हाथ बाँधे, जब पतवार हमारी डूबी-जा रही थी।
देख रही थी एक टक नम आँखें, बिछुङन के आखिरी पल को।
मानो चातक देखकर तङप रहा हो, बिना बरसे जा रहे बादल को।
बस तन्हाई ही शेष रह जाती है, जब साथी कोइ जुदा हुआ करते हैं।
मिले तुम्हें हम से भी अच्छा हमसफर, खुदा से यही दुआ करते हैं।
~सुखदेव 'करुण'
17 FEB, 2010

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