सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

हिंदुस्तान की कीमत . . .

स्वयं लिख आपना भाग्य, भाल पर अपनी कलम चला कर,
सूख मत सूर्यताप से, व्यथाग्नि से मत जला कर |

स्वयम अपनी बाँहों पे उठ, जरुरत नहीं सहारों की,
पुकार रहा है देश तुम्हारा, भाषा समझ ले इशारों की |


फ़ैल गई है पूरब में लाली, सूर्योदय हो रहा है,
जगा दे उनको ढोल पीटकर, अब भी जो कोई सो रहा है|

हिन्दू है तूं सिन्धु का वासी, हिन्दू शब्द का सार सिखा दे,
सच्चाई का साक्षी है जो, इतिहास बताकर अहंकार मिटा दे|

पश्चिम की भौतिकता से, कहाँ यह डगमगाया है,
सकल विश्व की अच्छाइयों को, हर संस्कृति से अपनाया है|

कूद पड़ प्रज्ज्वलित ज्वाला में, अंगारों की तरह दहकते जा,
समर्पित करके अपने प्राणों को, फूलों की तरह महकते जा|

संकट में है राष्ट्र तुम्हारा, सीमाएँ आज कुचल रही है,
वही आदर्श है वही तिरंगा, प्रजा फिर भी जल रही है|

बांध दे तूं एक सूत्र में, करगिल और कन्याकुमारी को ,
गौहाटी से चौपाटी तक, फूलों से मंडित ऐसी क्यारी हो|

ऐसा कठौर वज्र बना ले, तलवार कभी ना काट सके,
ज्यों सागर के पानी को, पतवार कभी ना  बाँट सके|

क्षत्रिय कभी पीछे नहीं हटता, लगा दे बाजी जान की,
अपना सीना चीर के बता दे, जो कोई कीमत पूछे हिन्दुस्तान की ||

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