नारी नर की जननी है ,
इस मातृशक्ति का सम्मान करो |
अरे नारी है श्रम का पुतला,
सजा कर सिंहासन इसका आह्वान करो |
इस मातृशक्ति का सम्मान करो |
अरे नारी है श्रम का पुतला,
सजा कर सिंहासन इसका आह्वान करो |
प्रेम, करुणा और त्याग से,
और ममत्व से क्या यह अछूती है |
अरे यही इस ब्रह्माण्ड में,
मानव जगत की एक अनुभूति है |
जिस कौख से जन्म लिया,
हाय! आज उसी को ठुकराते हो |
देखते हो नित नग्न अत्याचार,
स्वयं उन्हीं को अपनाते हो |
पूछो जरा अपनी माता से जाकर,
क्या सोचती है वो तुम्हारे प्रति हर पल |
क्या होता है मातृ-सनेह और वत्सल,
बता देगी वो चीर के अपना आँचल |
पूछो उस नवयोवना से जाकर,
क्यों माँ गौरी को फूल चढ़ती है |
किसके लिए मांगती है वो मन्नोतियाँ,
सर्वस्व अपना नीर सा बहती है |
क्या हालत है आज गृहणी की,
कितने काम वो सम्हालती है |
पालन-पोषण तुम्हारा करके,
बच्चों को तुम्हारे पलती है |
कौन है जो गीले में सो जाये,
जाड़े से तुम्हे बचा करके |
है कौन जो भूखा रह जाये,
भर पेट तुम्हे खिला करके |
बिना इसके क्या तुम यहाँ होते ?
स्वयं इसे मत भुलाओ तुम |
तुम्हें जन्म देकर इसने जो कर्ज किया,
सहर्ष उसे चुकाओ तुम |
कौन है जो गीले में सो जाये,
जवाब देंहटाएंजाड़े से तुम्हे बचा करके |
है कौन जो भूखा रह जाये,
भर पेट तुम्हे खिला करके
बहुत सुंदर सुखदेव..... नारी जीवन के हर रंग को शामिल कर लिया रचना में...... बेहतरीन
बहुत सुंदर रचना ..
जवाब देंहटाएंसुंदर लिखा आपने ....
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चैतन्य का कोना पर सुंदर सफेद चमकते पेड़........
बहुत सुंदर रचना ..
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