गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

चढ गया है आज बलिवेदी पर . . .

चढ गया है आज बलिवेदी पर, पुत्र तेरा बलिदानी देकर।।
दूर ना होगा माँ तेरे आँचल से, भारत माँ के आँचल में सोकर।।
बाँध लिया था जब कफन मैनेँ,
माँ की लाज बचाई थी।
चढकर बर्फीली चोटियोँ पर,
शहीदोँ की मशाल उठाई थी।
दुश्मन को ललकारा था माँ, कर में अमर कहानी लेकर।
चढ गया है आज बलिवेदी पर, पुत्र तेरा बलिदानी देकर।।

गूंजी थी जब सीमाएँ तोपों से,
गूंज उठी रणभेरी करगिल में,
गूँज उठा जय घोष घाटियों में,
दहकने लगे अंगारे दिल में।
कसम खाई थी माँ वर्दी पहनते, कर मेँ गीता कुरान को लेकर।
चढ गया है आज बलिवेदी पर, पुत्र तेरा बलिदानी देकर।।

खून उबला था अंग-अंग में,
कर ने तलवार थमाई थी।
माँ तेरी जयकार लगाकर,
सेना ने तोपें उठाई थी।
तिल-तिल कर दिया था दुश्मन के तन को, शांत हुई यह पीङा जब रक्त-धारें बह कर।
चढ गया है आज बलिवेदी पर, पुत्र तेरा बलिदानी देकर।।

मरते दम तक सामना किया था माँ,
विजय हमीं ने पाई थी।
वीरों की इस वीर जननी की,
सबने लाज बचाई थी।
घायल हुआ जब घाटियों के तिमिर में, माँ भारती को आहूति देकर।
चढ गया है आज बलिवेदी पर, पुत्र तेरा बलिदानी देकर।।


अंतिम इच्छा:-
साथी शव को सोंप दे जब,
तुम्हें हंसते-हंसते फूल चढाना है।
मेरी चिता जब जलने लगे माँ,
वन्दे मातरम् तुझको गाना है।।

1 टिप्पणी:

  1. कारगिल शहीदों को शत शत नमन!
    वन्दे मातरम्
    बहुत सुन्दर रचना धन्यवाद|

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