गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

कैसा रहा आपका अनुभव . . .

आपका अनुभव कैसा रहा?
यह प्रश्न अक्सर मैं उन लोगों से पूछा करता हूँ जिन्होँने बिना सोचे विचारे अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर समाज के दर्पण मैं सिर झुका कर अपने मुर्झाये चहरे को देखकर आत्मग्लानि से संकुचाते पाया है।
मैं उनके चहरे के भावों को सहजता से ही पढ़ लेता हूँ और अधिकतर यही पाता हूँ कि वो अपने आप को ही यह समझाने का असफल प्रयास करते रहते हैँ कि मैं निर्दोष हूँ। और आखिर में यह दोष किसी और के द्वारा अपने आप पर थोपा हुआ मानकर बोझिल सा सिर पकङे बैठ जाता है।
मौहल्ले में किसी लावारिस व्यक्ति का शव देखकर कुछ लोगोँ की भीङ जमा हुई। एक युवाओं का जत्था सङक पर बङे पत्थर फैँक रहा था बीच सङक पर टायर जला दिये थे, करीब दो घण्टे से जाम लग रखा था। भीङ मेँ से एक झुण्ड सङक के किनारे कतारबद्ध कुछ दुकानोँ की और चल पङा और बन्द करो-बन्द करो चिल्लाते हुए एक चाय की दुकान पर टूट पङे। दुकान वाला चिल्लाता रहा। काफी तोङ फोङ के बाद भीङ आगे बढ़ी, प्रशासन द्वारा काफी समझाने बुझाने के बाद शव को उठाया गया। दूसरे ही दिन सुबह जब मैं उसी दुकान पर चाय पी रहा था तब उसी तोङ फोङ की चर्चा चल रही थी कि एक युवा ठीक मैरे सामने की बैंच पर आकर बैठा। मैँने उसको भली प्रकार पहचान लिया था कि यह वही युवा है जिसने कल इसी दुकान पर तोङ फोङ किया था। किसी ने पूछा - मर्डर कैश का कुछ पता चला क्या?
बीच मैं पङते हुए वही युवा बोला -छोङो यार अपुन को क्या लेना, दुनिया में लाख मर्डर होते हैँ।
बस मैं यही तो चाह रहा था। मैंने सहजता से उस युवा से परिचय किया और धीरे से वही प्रश्न पूछ डाला- कैसा रहा कल के बन्द अभियान का अनुभव?
वह अचानक चौँक पङा और हकलता हुआ बोला - वास्तव मेँ इन लोगोँ को इस प्रकार तोङ फोङ नहीं करना चाहिए। मैँने कहा - परन्तु उसमें आप भी तो बढ़चढ कर हिस्सा ले रहे थे। यह सुनते ही उसकी गरदन शर्म के मारे झुक गई। तभी दुकान वाला बोल पङा - हाँ यही वो लङका है जिसने मेरे काउन्टर पर पत्थर मारकर सत्यानाश कर दिया था, अब मैं नहीँ छोङुंगा इसको। यह सुनकर उसको सब लोगोँ ने धिक्कारा। युवा ने सबसे माफी माँगी और दुकान मैं हुए नुकशान का हर्जाना भरने का वादा किया। आज वही युवा आज भी उस हॉटल मेँ अक्सर चाय पीने आ जाता है। ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैँ जहाँ पर पथ भ्रमित युवा इस प्रकार भटकता नजर आता है।

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