बुधवार, 5 सितंबर 2012

गुरु गोविंद दोउ खड़े . . .

(I)     मेरे गुरु के लिए ...



गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः। 
गुरुर्साक्षात्‌ परमब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवैनमः॥ 


  गुरु, शिक्षक, आचार्य, उस्ताद, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते है जो हमें सिखाता है, ज्ञान देता है। इसी महामानव को धन्यवाद देने को, अपनी कृतज्ञता दर्शाने को एक दिन है जो की शिक्षक दिवस के रूप में जाना जाता है। केवल धन दे कर शिक्षा हासिल नहीं होती। अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास , ज्ञानार्जन में बहुत सहायक होता है। कई सारी दुविधाये केवल एक विश्वास की 'मेरे गुरु ने सही बताया है' से मिट जाती है।
५ सितम्बर, भारत के द्वितीय राष्ट्रपति , शैक्षिक दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्मदिवस, शिक्षक दिवस के रूप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। ऐसा कह गया है की बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त नहीं होता, "गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही"।
हिंदू पंचांग गुरु पूर्णिमा को गुरु दिवस स्वीकार करते है। विश्व के विभिन्न देश अलग अलग तारीखों में शिक्षक दिवस मानते है।




संत नानकदास बिजकपाठी
               





कबीर के शब्दों में


    संत कबीर जी के शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं। माता पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है।

शिक्षक दिवस के इस शुभ अवसर पर उन शिक्षकों को हिंद-युग्म का शत शत प्रणाम जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों की वज़ह से आज हम इस योग्य हुए कि मनुष्य बनने का प्रयास कर सकें। [3] कबीर जी ने गुरु और शिष्य के लिए एक दोहा कहा है कि-

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय  
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।


  • जो राह दिखाई है तुमने 


पदचिन्हों के पीछे-पीछे,
आजीवन चलता जाऊँगा |
जो राह दिखाई है तुमने ,
मैं औरों को  दिखलाऊंगा ||
सूखी डाली को हरियाली , बेजान को जीवनदान दिया |
काले अंधियारे जीवन को , सौ सूरज से धनवान किया ||
परोपकार, भाईचारा,
मानवता, हमको सिखलाई |
सच्चाई की है दी मिसाल ,
है सहानुभूति क्या दिखलाई ||
कान पकड़ उठक- बैठक , थी छड़ियों की बरसात हुयी |
समझ न पाया उस क्षण मैं, अनुशासन की शुरुआत हुयी ||
मुखमंडल पर अंगार कभी ,
आँखों में निश्छल प्यार कभी|
अंतर में माँ की ममता थी,
सोनार कभी, लोहार कभी ||
जीवन को चलते रहना है , लौ इसकी झिलमिल जलती है |
जीवन के हर चौराहे पर, बस कमी तुम्हारी खलती है ||
जीवन की कठिन-सी राहों पर,
आशीष तुम्हारा चाहूँगा|
जो राह दिखाई है तुमने,
मैं औरों को दिखलाऊंगा ||




  • (II) मेरे शिष्यों के लिए 






सुखदेव 'करुण'

हर विद्यार्थी में मौजूद है एक शिक्षक


           आज शिक्षक दिवस है। दिवसों की भीड़ में एक और दिवस! कहने को आज मैं आपका  शिक्षक  हूँ, किंतु सच तो यह है कि जाने-अनजाने न जाने कितनी बार मैंने आपसे शिक्षा ग्रहण की है।कभी किसी के तेजस्वी आत्मविश्वास ने मुझे चमत्कृत कर‍ दिया तो कभी किसी विलक्षण अभिव्यक्ति ने अभिभूत कर दिया । कभी किसी की उज्ज्वल सोच से मेरा चिंतन स्फुरित हो गया तो कभी सम्मानवश लाए आपके नन्हे से उपहार ने मुझे शब्दहीन कर‍ दिया। कक्षा में अध्यापन के अतिरिक्त जब मैं स्वयं को उपदेश देते हुए पाता हूँ तो स्वयं ही लज्जित हो उठता हूँ। मैं कौन हूँ? क्यों दे रहा  हूँ ये प्रवचन? आप लोग मुझे क्यों झेल रहे हैं...

                                                                                                                      सुखदेव 'करुण'                                                               

1 टिप्पणी:

  1. शिक्षक दिवस की आपको बहुत बधाई. गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास फलदायी होता है. हार्दिक शुभकामनाएँ.

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